Monday, July 21, 2014

यही दोस्त मिले, मुझे इस ज़िन्दगी में


बच्पन :
जाने वो कैसे दिन ते

खुशियों की मंज़िल ढूँढ़ते हुए
बिचद्गये हर साती मेरा
पल दो पल में  याद बनके
बदल गया सब का चेहरा।

जवानी:
जाने वो  कैसे दिन ग़ुज़रे

मंज़िल पार करते हुए,
याद करी मे अपनी बिचड़े दोस्त को
सब अपने मंज़िल पर टिके रहे
ना आए याद मेरी तब किसी को


भुड़ापा :
जाने अब कैसे दिन आगए

याद करते  आए मेरे  बिचड़े  दोस्त
कभी मेरी सेहत भिग़ड़ती
कभी दिमाग होता  बेहोश
पर उनकी याद कभी न आती

फिर भी सोचती  हूँ  " मुझे कैसी दोस्त दी हैं यह ज़िन्दगी?!"

1 comment:

Ankur Anand said...

understanding life is too complex .. all we can do is live it our own way .. ! nice lines ! :)