बच्पन :
जाने वो कैसे दिन ते
खुशियों की मंज़िल ढूँढ़ते हुए
बिचद्गये हर साती मेरा
पल दो पल में याद बनके
बदल गया सब का चेहरा।
जवानी:
जाने वो कैसे दिन ग़ुज़रे
मंज़िल पार करते हुए,
याद करी मे अपनी बिचड़े दोस्त को
सब अपने मंज़िल पर टिके रहे
ना आए याद मेरी तब किसी को
भुड़ापा :
जाने अब कैसे दिन आगए
याद करते आए मेरे बिचड़े दोस्त
कभी मेरी सेहत भिग़ड़ती
कभी दिमाग होता बेहोश
पर उनकी याद कभी न आती
फिर भी सोचती हूँ " मुझे कैसी दोस्त दी हैं यह ज़िन्दगी?!"
1 comment:
understanding life is too complex .. all we can do is live it our own way .. ! nice lines ! :)
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