Tuesday, August 5, 2014

Mein aur meri tanhai - solitary pleasures

में और मेरी तन्हाई

सुनाती  है वह पुराने गीत
खो जाते हैं हम, हसीन ख़्यालों में

यह संगीत सोच बदल देता है
फिर कभी सोचने का वक़्त भी नहीं मिलता !

में और मेरी तन्हाई

ले जाती है हमें,
उस जगह जहाँ. .

 पंछियों की चीक,
फूलों की महक,

बारिश से भीगी
मिटटी की खुशबू

देती है हमें
इतनी कुशी ,

ज़ुबान के दो लफ्ज़ बना देती
एक पल के लिए हमें, कवि

 में और मेरी तन्हाई

 गाती  है मुझसे…

लग जा गले की फिर
यह हसीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में
मुलाकात हो न हो। . .

में और मेरी तन्हाई

अच्छी लगती है हमें
यह दो पल का अकेलापन
जब मिलती है वक़्त
ज़ी बार के करू ,जो चाहे  यह मंन

में और मेरी तन्हाई

अब गाती है मुझसे...

मुबारकें तुम्हे के तुम
किसी के  नूर हो गए
किसी के इतने पास हो
के हम से दूर हो गए।

में और मेरी तन्हाई

Hear it here

3 comments:

Ankur Anand said...

seriously wonderful ! the recitation is so beautiful and awesome ! :)

Ankur Anand said...

and your voice is also very soothingly beautiful :)

V. Archana said...

Thank you so much, ankit. :) I'm glad you liked it.